Tajawal

Monday 10 December 2018

बुलंदशहर इज्तिमा का अनछुआ सबक़-लेखक- मंसूर अदब पहासवी 9267095874


 बुलंदशहर इज्तिमा का अनछुआ सबक़ 
दोस्तों वैसे तो मैं किसी भीड़भाड़ वाले प्रोग्राम में कम ही जाता हूँ मगर बुलंदशहर इज्तिमा हमारे अपने ज़िले में होना और महीनों से चल रही उसकी तैयारी, और बेइंतेहा ज़ायरीन के हुजूम ने मुझे वहाँ जाने पर मजबूर कर दिया
क्योंकि इज्तिमा एक दीनी प्रोग्राम होता है इसलिए ये बात पहले से दिमाग़ में थी कि वहाँ हमें दीनी तक़रीर सुनने को मिलेंगीं , अल्लाह और उसके रसूल के साथ दीन ईमान की बातें बताई जायेंगी और आख़िर में बहुत सी जमातें इस्लाम की दावत का काम करने रवाना होंगी.. और हाँ ये भी सोच रखा था कि वहाँ सिर्फ जमाती लाइन के मुसलमान ही जायेंगे 🤔🤔
मगर जब मैं अपने क़स्बे पहासू से निकल कर इज्तिमा के लिए चला तब बुलंदशहर तक लोगों के हुजूम इज्तिमागाह की तरफ़ बढ़ते हुए दिखाई दिए और जगह जगह खाने पीने के स्टाल जिन पर मुहब्बत वाली ज़बरदस्ती से लोगों को रोक कर चाय नाश्ता, और खाना पीना करवाने के बाद ही आगे बढ़ने दिया जा रहा था जो कि एकदम मुफ़्त था और सब लोग अपने अपने स्टाल पर लोगो को खींच लेना चाह  ते थे
कुछ आगे चलने पर रोड पर फलों और पानी के पैकेट, बोतल से लदी गाड़ियों से ज़ायरीन को ज़बरदस्ती समान बाटते हुए मुसलमान मिले
पैदल चल रहे बुज़ुर्ग ज़ायरीन को अपनी गाड़ियाँ रोक कर उनको इज्तिमागाह तक ले जाते हुए मुसलमान मिले
बिना किसी प्रसाशन की मदद के भारी ट्रैफिक को संभालते हुए मुसलमान मिले
रोड पर आ रहीं ग़ैर मुस्लिम की गाड़ियों के आगे भाग भाग कर पहले उनको रास्ता साफ करा कर देते हुए मुसलमान मिले
बूढ़ी औरतों और बच्चों को हाथ पकड़ कर रास्ता पार कराते हुए मुसलमान मिले
टोपी और कुर्ता पायजामा के साथ हाथों में तिरंगा लहराते हुए मुसलमान मिले
अपने घरों, गॉवों से हज़ारों लोगों के लिए खाना बना कर लाते हुये मुसलमान मिले
लाखों की तादात में बेइंतहा ख़ामोशी से चलते हुए एक दूसरे का एहतराम, मदद और मुहब्वत का जज़्बा लिए हुए मुसलमान मिले
मुफ़्त में अपनी गाड़ियों से ज़ायरीन को उनके घरों से ला कर इज्तिमागाह तक छोड़ते मुसलमान मिले
लाइट,टेंट,और ऐसे हज़ारों काम पूरी मेहनत से बिना किसी पगार के करते हुए मुसलमान मिले
और हाँ...तमाम फ़िरक़ों के मुसलमान बिना किसी फ़िरक़ाई इख़्तेलाफ़ के एक साथ एक ही मंज़िल पर जाते हुए मिले
और इज्तेमागाह तक पहुंचते पहुंचते दो करोड़ मुसलमान अपने फ़िरक़ा, नाम,जात,अमीरी,ग़रीब,रुतबा, हलक़ा से आज़ाद हो कर बस एक हमनाम हो गए और वो एक नाम था ' अल्लाह वाले '
और आख़िरकार लगभग दो करोड़ मुसलमान इस इज्तिमा में शिरकत करते हुए तीन दिन एक इज्तेमागाह मे दीनी तालीम ले कर बिना किसी शोर शराबे के बिना किसी को तक़लीफ़ दिए अपने घरों को बापस लौट गए...
इज्तिमा तो ख़ैरियत से मुकम्मल हो चुका था मगर मुझे एक सवाल परेशान कर रहा था.. और वो सवाल था "" ये इतने अच्छे मुसलमान कौन थे और कहाँ से आये थे "" ?????🤔🤔
अगर ये कहूँ कि ये कौन थे और कहाँ से आये थे तो इनमें हज़ारों चेहरे मेरी पहचान के थे... फिर ये कैसे मुमकिन हुआ कि सैकड़ों इख़्तेलफ़ात में बंटे हुए मुसलमान एक हमनाम हो गए...???
क्या अल्लाह ने इनको बस तीन दिन के लिए हिदायत दे दी थी... या किसी ने कोई जादू कर दिया था... या इनके इख़्तेलाफ़ी आक़ाओं ने तीन दिन का कोई समझौता कर लिया था.. अगर आप सोचने बैठेंगे तो सर चकरा जाएगा🤔🤔
तो चलिए मैं बताता हूँ ये कैसे मुमकिन हुआ🗣️🗣️
ये ऐसे मुमकिन हुआ कि वहाँ पर इस्लाम के नाम पर फ़िरक़ापरस्ती का ज़हर उगलती हुई तक़रीरें करने वाले इस्लाम के ठेकेदार नही थे
वहाँ पर टीवी चैनल्स पर तयशुदा बहस करके मुसलमानो को गुमराह करने वाले फ़र्ज़ी मौलाना नहीं थे
वहाँ मुस्लिम क़ौम को गोश्त के टुकड़े की तरह अपनी अपनी तरफ़ खींचने वाले सियासी भेड़िये नहीं थे
वहाँ क़ौम के जज़्बातों पर झूंठे आँसू बहा कर अपनी जेब भरने वाले गवैये नहीं थे
वहाँ मुसलमानों को दुनिया का डर दिखा कर लूटने वाले आस्तीन के सांप नहीं थे
वहाँ पर्दे पर झूंठे ख़्वाब दिखाने वाले अदाकार नही थे
वहाँ मुसलमानो में इख़्तेलफ़ात पैदा कर के अपनी ताक़त दिखा कर अपनी नाक ऊँची करने वाले क़ौम के रहनुमा नहीं थे
वहाँ मुसलमानो को अपने पीछे चलाने वाले अपना रुतबा दिखाने वाले क़ौम के मक्कार हमदर्द नहीं थे..
और फिर इन सब के बिना मुसलमान, मुसलमान बन गए.. ठीक ऐसे मुसलमान जैसा मुसलमानो को होना चाहिए😊😊
और यक़ीन मानिये मुसलमान ऐसे ही नेक होते हैं अगर वो किसी भेड़िये के चंगुल में न फंसे हों तो😊😊😊 बस अब ज़रूरत इस बात की है कि मुसलमान इन आस्तीन के सांपों को पहचान कर ख़ुद से अलग कर दें... तो इंशाल्लाह उनका फिर वो ही मुक़ाम होगा जो हुआ करता था
लेखक- मंसूर अदब पहासवी 9267095874
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ़
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