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Sunday 5 June 2016

शहर-ए-दिल्ली की आन, बान, शान कुतुब मीनार

शहर-ए-दिल्ली की आन, बान, शान कुतुब मीनार

दिल्ली की पहचान कुतुब मीनार संभवत: पत्थरों की बनी विश्व की सबसे उंची मीनार है। यूनेस्को के विश्व विरासत स्थलों में शामिल कुतुब क्षेत्र की यह मीनार इस्लाम और हिन्दू स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है।

दिल्ली के पुरातत्व अधीक्षक के के मोहम्मद ने कहा कि कुतुब मीनार की उंचाई 72. 5 मीटर है। लाल और धूसर बलुआ पत्थरों से बनी है। इस मीनार के आधार का व्यास 14. 32 मीटर और शिखर का व्यास 2. 75 मीटर है।

कुतुब मीनार का निर्माण कुतबुद्दीन ऐबक ने 1199 में शुरू किया था, वह पहली मंजिल ही बना सका। उसके उत्तराधिकारी शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने उपरी तीन मंजिलें और बनवाई। मीनार के आसपास एक उंची दीवार थी, जिसके बाहरी गलियारे को पत्थरों से निर्मित बड़े स्तंभों से सहारा दिया गया था।

मीनार में अरबी तथा नागरी लिपि में कई लेख पत्थरों पर खुदे हैं जो कुतुब का इतिहास बताते हैं। इसकी सतह के शिलालेखों के अनुसार, फिरोज शाह तुगलक और सिकंदर लोदी ने मरम्मत कराई थी। वर्ष 1829 में मेजर आर स्मिथ ने भी इसकी मरम्मत कराई थी।

कुतुब मीनार पर अंकित नागरी और फारसी अभिलेखों से प्रतीत होता है कि सन 1326 और 1368 में बिजली गिरने से इसे दो बार नुकसान हुआ था। पहले नुकसान के बाद मुहम्मद तुगलक ने उसने 1332 में इसकी मरम्मत कराई। दूसरे नुकसान के बाद फिरोज शाह तुगलक ने इसकी मरम्मत कराई थी। बाद में 1503 में सिकंदर लोदी ने भी उपर की मंजिलों की मरम्मत कराई थी।
मोहम्मद ने बताया कि इसमें बारिश का पानी जाने से खतरा उत्पन्न हो गया था, जिसकी तीन साल पहले ‘वाटर पैकिंग’ कर दी गयी है।

वाई डी शर्मा ने लिखा है कि यहां मंदिरों के नक्काशीयुक्त पत्थरों का भी इस्तेमाल हुआ। यहां निर्मित एक छतरी गिर गई थी, जिसकी जगह मेजर स्मिथ ने बाद में इस्लामी शैली की दूसरी छतरी 19वीं शताब्दी के शुरू में बनवाई लेकिन वह बेमेल लगती थी और उसे 1848 में उतार दिया गया। कुतुब मीनार के पूर्वोत्तर में है कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद जिसका निर्माण 1198 में कुतबुद्दीन ऐबक ने कराया था। यह मस्जिद दिल्ली के सुल्तानों द्वारा निर्मित शुरूआती बड़ी मस्जिदों में से एक है।
मस्जिद के पूर्वी मुख्य द्वार के अभिलेख के अनुसार, कुतबुद्दीन ऐबक ने हिंदुओं और जैनों के 27 मंदिरों को तोड़ा तथा उनके मलबे और स्तंभों से यह मस्जिद बनवाई।

मस्जिद परिसर में लौह स्तंभ है जिस पर गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि में संस्कृत अभिलेख के अनुसार, यह चतुर्थ शताब्दी का है। अभिलेख के अनुसार, यह स्तंभ गुप्त वंश के चंद्रगुप्त द्वितीय की याद में विष्णुध्वजा के रूप में विष्णुपद पहाड़ी पर निर्मित किया गया था। स्तंभ के उपर बना गहरा छेद संकेत करता है कि शायद यहां गरूड की प्रतिमा स्थापित की गई होगी।

कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद के उत्तर पश्चिम में इल्तुतमिश का मकबरा है। इसे स्वयं इल्तुतमिश ने 1235 में बनवाया था। मस्जिद का दक्षिणी द्वार अलाउद्दीन खिलजी ने बनवाया था और इसे अलाई दरवाजा कहा जाता है। अलाई दरवाजा पहली इमारत है जिसमें निर्माण और ज्यामितीय अलंकरण के इस्लामी सिद्धांतों का इस्तेमाल किया गया।

कुतुब मीनार के उत्तर में अधूरी बनी अलाई मीनार स्थित है। इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने शुरू किया था लेकिन 24. 5 फुट की पहली मंजिल जब बनी तब खिलजी का देहांत हो गया और मीनार अधूरी रह गई।

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