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Thursday 31 March 2016

टाटा के फैसले का साइड इफेक्ट: जा सकती है 40 हजार लोगों की नौकरी

टाटा के फैसले का साइड इफेक्ट: जा सकती है 40 हजार लोगों की नौकरी

मुंबई/लंदन। टाटा स्टील ने ब्रिटेन का पूरा बिजनेस बेचने का फैसला किया है। वजह है चीन से सस्ते स्टील का इम्पोर्ट। कंपनी ने कहा कि स्टील के गिरते रेट के कारण वह ब्रिटेन की यूनिट बेचने के लिए मजबूर है। बताया जा रहा है कि ब्रिटेन के स्टील सेक्टर में करीब 40 हजार नौकरियों के खत्म होने के खतरा है। इस बीच यूके के पीएम डेविड कैमरन ने इस मामले में इमरजेंसी मीटिंग बुलाई है। बिजनेस रिव्यू के बाद कंपनी ने लिया फैसला...
- माना जा रहा है कि इस परफॉर्मेंस को देखते हुए ही टाटा ने मंगलवार को अपने बिजनेस रिव्यू में यह फैसला किया। 
- इससे टाटा स्टील की ब्रिटिश इकाई में काम करने वाले हजारों लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ने की आशंका है।
- कंपनी ने कहा, "हमने टाटा स्टील यूरोप को इंग्लैंड के बिजनेस के लिए सभी विकल्प तलाशने को कहा है। इसमें टाटा स्टील यूके को पूरी तरह या कुछ हिस्सा बेचना भी शामिल है।"
- चीन का नाम लिए बगैर कंपनी ने कहा कि हाल के महीनों में ज्यादा सप्लाई और मैन्युफैक्चरिंग की ऊंची लागत के कारण ब्रिटेन समेत पूरे यूरोप में हालात तेजी से खराब हुए हैं।
- मुंबई में हुई बोर्ड की बैठक में इंग्लैंड की सबसे बड़ी ट्रेड यूनियन 'यूनाइट' के महासचिव रॉय रिकहस ने भी हिस्सा लिया।
चीन के सस्ते एक्सपोर्ट से स्थिति खराब

- दुनिया का आधा स्टील प्रोडक्शन चीन करता है। अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, रूस और जापान मिलकर जितना बनाते हैं, उससे भी ज्यादा। 
- चीन में घरेलू डिमांड घट रही है। इसलिए वह सस्ता स्टील एक्सपोर्ट कर रहा है। 
- यूरोपियन यूनियन ने जनवरी में चीन के स्टील पर 13% ड्यूटी लगाने की घोषणा की थी। लेकिन यूरोपीय कंपनियों का कहना है कि यह ड्यूटी बहुत कम है और देर से लगाई गई।
घाटे का सौदा बनी 2007 में हुई डील

- टाटा स्टील ने 2007 में 14.2 अरब डॉलर (अब करीब 94,000 करोड़ रुपए) में एंग्लो-डच कंपनी कोरस को खरीदा था। 
- इसके लिए इसने 10.5 अरब डॉलर कर्ज लिया था। 
- अगले ही साल इकोनॉमिक क्राइसिस आ गया, जिससे वर्ल्ड इकोनॉमी अभी तक नहीं उबर पाई है। 
- कोरस को खरीदते वक्त रतन टाटा ग्रुप के चेयरमैन थे। बाद में उन्होंने कहा था,"अगर पता होता कि ग्लोबल इकोनॉमिक क्राइसिस आने वाला है तो यह डील नहीं करता।"
दिसंबर में 675 करोड़ का घाटा
- छंटनी, एसेट सेलिंग और मॉडर्नाइजेशन के बावजूद टाटा स्टील यूरोप फायदे में नहीं आ सकी। 
- दिसंबर 2015 क्वार्टर में यूरोपीय बिजनेस से कंपनी को 675 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। एक क्वार्टर पहले लॉस 365 करोड़ था। 
- कंपनी ने जनवरी में 1,050 लोगों को निकाला। अक्टूबर से कंपनी 3,000 लोगों को हटा चुकी है।
मुश्किल होगा खरीददार तलाशना
- स्टील इंडस्ट्री की हालत देखते हुए टाटा के लिए खरीददार तलाशना बेहद मुश्किल होगा। 
- 1990 के दशक में ब्रिटेन की जीडीपी में स्टील का कॉन्ट्रिब्यूशन 0.5% था, अब 0.1% रह गया है।
- बीते 25 साल में जीडीपी का साइज 62% बढ़ा, लेकिन स्टील इंडस्ट्री 24% घट गई।
भारतीय कंपनी की सबसे बड़ी डील थी
- कोरस को खरीदना किसी भारतीय कंपनी की विदेश में सबसे बड़ी डील थी। 
- इससे टाटा स्टील की कैपेसिटी 87 लाख टन से बढ़कर 2.5 करोड़ टन हो गई थी। 
- डील के बाद टाटा स्टील दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी स्टील कंपनी बन गई थी। फॉर्च्यून 500 में शामिल होने वाली पहली भारतीय कंपनी भी बनी।
इनवेस्टर्स के लिए अच्छा फैसला
- रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने इंग्लैंड का बिजनेस बेचने के फैसले को 'क्रेडिट पॉजिटिव' बताया है।
- बुधवार को बीएसई में टाटा स्टील के शेयरों में 6.75% की तेजी रही।
पीएम कैमरन आज करेंगे इमरजेंसी बैठक

- ट्रेड यूनियनों ने सरकार से प्लान्ट के नेशनलाइजेशन की मांग की है।
- सबसे बड़ी यूनियन 'यूनाइट' ने स्टील सेक्टर को बचाने के लिए प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से कदम उठाने की रिक्वेस्ट की है।
- कैमरन गुरुवार को आपात बैठक कर सकते हैं। इंडस्ट्री मिनिस्टर एना सोबरी ने कहा कि सरकार कुछ समय के लिए कंपनी की हिस्सेदारी खरीद सकती है।
सीईओ ने पिछले माह दिया था इस्‍तीफा
- टाटा स्‍टील यूरोप के सीईओ कार्ल कोहेलर ने पिछले माह अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया था।
- कंपनी ने उनकी जगह चीफ टेक्निकल ऑफिसर हैंस फिशर को अपना नया सीईओ नियुक्‍त किया था।
भारत ने सेफगार्ड ड्यूटी की अवधि बढ़ाई
- भारत ने चुनिंदा स्टील प्रोडक्ट्स के इम्पोर्ट पर सेफगार्ड ड्यूटी मार्च 2018 तक के लिए बढ़ा दी है।
- इसका मकसद चीन के सस्ते एक्सपोर्ट से घरेलू इंडस्ट्री को बचाना है। 
- हालांकि, दो साल में सेफगार्ड ड्यूटी को 20% से घटाकर 10% किया जाएगा। पिछले साल सितंबर में यह ड्यूटी लगाई गई थी। 31 मार्च 2016 को इसकी अवधि खत्म हो रही थी।
प्रोडक्शन के मामले में भारत चौथे नंबर पर
भारत - 8.65 करोड़ टन 
अमेरिका -8.82 करोड़ टन 
जापान -11.07 करोड़ टन 
चीन -82.27 करोड़ टन

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