Tajawal

Saturday, 15 July 2017

इसी तरह हिजाब वाली से कोई बदतमीजी होती है तो ईसाई और यहूदी औरतें

आमतौर पर हर इस्लामी स्कॉलर या मुक़र्रिर अपने खिताब में एक बात जरूर कहता है कि मुसलमानो के सबसे बड़े दुश्मन यहूद और नसारा हैं और इस्लामी दुनिया के खिलाफ इन्होंने एक लंबा रक्त रंजित युद्ध लड़ा था जिसे ये क्रूसेड कहते हैं।

दूसरी तरफ हमारा प्यारा भारतवर्ष है , जिसके निवासियों याने हिंदुओं के साथ यहां के मुसलमानो का रक्त सम्बन्ध है ।यहां के अधिकतर मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू ही थे और यहां के हिंदुओं को उदार और सहिष्णु कहा जाता है।।।
आइये ज़रा देखें कि ईसाई देशों और भारत देश मे क्या क्या भिन्नताएं हैं।

अमेरिका में जब मुसलमानों के खिलाफ जब हेट स्पीच आती है तो हज़ारो ईसाई परिवार अपने घर के बाहर लिख देते है कि 'मैं मुस्लिम हूँ।'
इसी तरह हिजाब वाली से कोई बदतमीजी होती है तो ईसाई और यहूदी औरतें मुसलमान औरतों के साथ हिजाब पहनकर प्रदर्शन करती है।।।
इसी तरह ब्रिटेन में मस्जिद के बाहर एक ईसाई शख्स मुसलमानों पर गाड़ी चढ़ा देता है, फिर उसी मस्जिद का इमाम उसे बचाता है।अगले ही दिन ईसाई भी मुसलमानों के सपोर्ट में सड़क पर दिखाई देते है। इस तरह की चीजें पश्चिम में आमतौर पर दिख जाती है।उन देशों में , जिन्हें इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है।।।नीदरलैंड और फ्रांस के चुनावों में आपने देखा होगा कि जनता ने उन कट्टरपंथी नेताओ को धूल चटा दी जिन्होंने चुनाव जीतने पर मस्जिदों को बंद करा देने की घोषणा की थी , और जनता ने मेंक्रो जैसे उदारवादी को सत्ता सौंप दी ///
पर हमारे उदार और सहिष्णु देश मे विडम्बना यह है कि हिन्दू समाज अपने कट्टरपंथियों का विरोध करना तो दूर , उल्टे उनको अपना मसीहा और हृदय सम्राट बना लेता है और चुनाव में उनको भारी बहुमत से जिता कर उनको सत्ता सौंप देता है।कल ही एक नेता ने बयान दिया है कि अमरनाथ हमले के विरोध में हजयात्रियों पर हमले किये जाएंगे। कोई साध्वी कहती है कि भारत को मुस्लिम मुक्त किया जाएगा। लोग सड़कों पर निर्दोष मुस्लिमों को मार रहे हैं और शेष हिन्दू जनता या तो वीडियो बना रही है या इस कांड को मौन समर्थन दे रही है///
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अब आप बताइए कि पश्चिम के ईसाई बहुसंख्यक समाज और भारत के हिन्दू समाज मे कितना बड़ा अंतर है ///
महान भारत के लिए सामजिक सदभाव सबसे ज्यादा जरूरी है जो खत्म होता जा रहा है।तो क्या अब यह मान लिया जाए कि जहां एक ओर यहूदो नसारा ने मुसलमानो से अपनी दुश्मनी को भुला दिया है और एक नया , सभ्य, प्रगतिशील राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है
, वहीं दूसरी ओर भारत के उदार और सहिष्णु कहे जाने वाले हिन्दू समाज ने मुसलमानो से अपने बरसों पुराने रक्त-सम्बन्धों को भुला दिया है और देश मे ऐसी स्थिति के निर्माण में मदद कर रहा है जो अंततः इस महान देश को गृहयुद्ध की राह पर ले जाने वाला है ???
मोहम्मद आरिफ दगिया
14/07/2017

Tuesday, 23 May 2017

मिस्र के पिरामिड रोचक तथ्य

मिस्र के पिरामिड वहां के तत्कालीन फैरो (सम्राट) गणों के लिए बनाए गए स्मारक स्थल हैं, जिनमें राजाओं के शवों को दफनाकर सुरक्षित रखा गया है। इन शवों को ममी कहा जाता है। उनके शवों के साथ खाद्यान, पेय पदार्थ, वस्त्र, गहनें, बर्तन, वाद्य यंत्र, हथियार, जानवर एवं कभी-कभी तो सेवक सेविकाओं को भी दफना दिया जाता था।
भारत की तरह ही  की सभ्यता भी बहुत पुरानी है और प्राचीन सभ्यता के अवशेष वहाँ की गौरव गाथा कहते हैं। यों तो मिस्र में १३८ पिरामिड हैं और  के उपनगर में तीन लेकिन सामान्य विश्वास के विपरीत सिर्फ गिजा का ‘ग्रेट पिरामिड’ ही प्राचीन विश्व के सात अजूबों की सूची में है। दुनिया के सात प्राचीन आश्चर्यों में शेष यही एकमात्र ऐसा स्मारक है जिसे काल प्रवाह भी खत्म नहीं कर सका।
यह पिरामिड ४५० फुट ऊंचा है। ४३ सदियों तक यह दुनिया की सबसे ऊंची संरचना रहा। में ही इसकी ऊंचाई का कीर्तिमान टूटा। इसका आधार १३ एकड़ में फैला है जो करीब १६ फुटबॉल मैदानों जितना है। यह २५ लाख चूनापत्थरों के खंडों से निर्मित है जिनमें से हर एक का वजन २ से ३० टनों के बीच है। ग्रेट पिरामिड को इतनी परिशुद्धता से बनाया गया है कि वर्तमान तकनीक ऐसी कृति को दोहरा नहीं सकती। कुछ साल पहले तक से माप-जोख का उपकरण ईजाद होने तक) वैज्ञानिक इसकी सूक्ष्म सममिति (सिमट्रीज) का पता नहीं लगा पाये थे, प्रतिरूप बनाने की तो बात ही दूर! प्रमाण बताते हैं कि इसका निर्माण करीब २५६० वर्ष ईसा पूर्व मिस्र के शासक खुफु के चौथे वंश द्वारा अपनी कब्र के तौर पर कराया गया था। इसे बनाने में करीब २३ साल लगे।

म्रिस के इस महान पिरामिड को लेकर अक्सर सवाल उठाये जाते रहे हैं कि बिना मशीनों के, बिना आधुनिक औजारों के मिस्रवासियों ने कैसे विशाल पाषाणखंडों को ४५० फीट ऊंचे पहुंचाया और इस बृहत परियोजना को महज २३ वर्षों मे पूरा किया? पिरामिड मर्मज्ञ इवान हैडिंगटन ने गणना कर हिसाब लगाया कि यदि ऐसा हुआ तो इसके लिए दर्जनों श्रमिकों को साल के ३६५ दिनों में हर दिन १० घंटे के काम के दौरान हर दूसरे मिनट में एक प्रस्तर खंड को रखना होगा। क्या ऐसा संभव था? विशाल श्रमशक्ति के अलावा क्या प्राचीन मिस्रवासियों को सूक्ष्म गणितीय और खगोलीय ज्ञान रहा होगा? विशेषज्ञों के मुताबिक पिरामिड के बाहर पाषाण खंडों को इतनी कुशलता से तराशा और फिट किया गया है कि जोड़ों में एक ब्लेड भी नहीं घुसायी जा सकती। मिस्र के पिरामिडों के निर्माण में कई खगोलीय आधार भी पाये गये हैं, जैसे कि तीनों पिरामिड आ॓रियन राशि के तीन तारों की सीध में हैं। वर्षों से वैज्ञानिक इन पिरामिडों का रहस्य जानने के प्रयत्नों में लगे हैं किंतु अभी तक कोई सफलता नहीं मिली है।

रोचक तथ्य

  • ग्रेट पिरामिड एक पाषाण-कंप्यूटर जैसा है। यदि इसके किनारों की लंबाई, ऊंचाई और कोणों को नापा जाय तो पृथ्वी से संबंधित भिन्न-भिन्न चीजों की सटीक गणना की जा सकती है।
  • ग्रेट पिरामिड में पत्थरों का प्रयोग इस प्रकार किया गया है कि इसके भीतर का तापमान हमेशा स्थिर और पृथ्वी के औसत तापमान २० डिग्री सेल्सियस के बराबर रहता है। यदि इसके पत्थरों को ३० सेंटीमीटर मोटे टुकड़ों मे काट दिया जाए तो इनसे फ्रांस के चारों आ॓र एक मीटर ऊंची दीवार बन सकती है।
  • पिरामिड में नींव के चारों कोने के पत्थरों में बॉल और सॉकेट बनाये गये हैं ताकि ऊष्मा से होने वाले प्रसार और भूंकप से सुरक्षित रहे।
  • मिस्रवासी पिरामिड का इस्तेमाल वेधशाला, कैलेंडर, सनडायल और सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी की गति तथा प्रकाश के वेग को जानने के लिए करते थे।
  • पिरामिड को गणित की जन्मकुंडली भी कहा जाता है जिससे भविष्य की गणना की जा सकती है।
  • कुछ लोग पिरामिडों में स्थित जादुई असर की बात भी करते हैं जो मानव स्वास्थ्य पर शुभ प्रभाव डालता है।[2]

Tuesday, 2 May 2017

लाइक प्लैनेट्स से ऑनलाइन पैसा कमाने का आसान तरीका !

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कोल्हुई कस्बे में पेट्रोल पम्प के पास तेज रफ्तार से जा रही कार विद्युत पोल व ट्रक से टकराकर पलट गई कार में सवार तीन लोगों की मौके पर मौत हो गई, जबकि दो अन्य व्यक्ति गम्भीर रूप से घायल हो गए हैं।

कोल्हुई कस्बे में पेट्रोल पम्प के पास तेज रफ्तार से जा रही कार विद्युत पोल व ट्रक से टकराकर पलट गई कार में सवार तीन लोगों की मौके पर...